Search This Blog

Saturday, January 28, 2023

भारत की धरोहर को समर्पित "जड़ोंतक" हिंदी कवितासंग्रह प्रकाशित

भारत अध्यात्म और आधुनिकता एक सजग उदाहरण बन कर पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रहा है। इसी अध्यात्म और आधुनिकता का अनोखा संयोग अपने कविताओं के अंदाज में बांधकर मुंबई में स्थित वाशिम की मूलनिवासी साहित्यिका रानी अमोल मोरे (उलेमाले) जी का भारत की धरोहर को समर्पित "जड़ोंतक" हिंदी कवितासंग्रह गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रकाशित हुआ। विदर्भ पर्यटन पर आधारित "वऱ्हाड वारं" और साहित्य भूषण पुरस्कार प्राप्त "रानमोती" कवितासंग्रह के बाद रानी मोरे का यह हिंदी का पहला प्रयास है। फिर भी दिलचस्प बात यह है कि इस कविता संग्रह को सुप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायिका पद्मश्री पद्मजा फेनानी जोगलेकर जी ने अपनी प्रस्तावना से नवाजा है और 'नोशन प्रेस' प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इस कविता संग्रह में कुल नउ खंड और इक्यासी कविताओं का समावेश है। जिनमे आराधना, जीवनकल्प, धरोहर, आख्यान, अभिप्रेरणा, मलाल, नित्यरथ, कुदरत और बालरत्न खंड है। हर खंड की कविताये अपने विभाजन के अनुरूप विषयपर गहराई से भाष्य करती है।


अपनी कवितासंग्रह के बारे में कहते हुए रानी जी कहती है, ‘जड़ोंतक’ एक प्रयास है सच को सच के नजरीये से देखने का। जिसमें पढ़नेवाला भगवान श्रीकृष्ण से लेकर आधुनिक भारत की सत्तासंघर्ष तक हर वो विषय का आनंद ले सकता है और उसे ‘जड़ोंतक’ सोचने के लिए मजबूर हो सकता है। अगर पढ़नेवाले सच्चे मन से कविताओं में रूची रखते है तो 'जड़ोंतक' उनके लिये एक जंगल की सैर जैसा है, जहाँ शिकार भी है और शिकारी भी, जहाँ पाणी भी है और आग भी, जहाँ तितलियाँ भी है तो जहरीले नाग भी, कुछ काटे भी चुभेंगे तो कुछ खुबसूरत खिलते फूल मन को मोहित भी करेंगे। यहाँ साधना, ईश्वर, वैराग्य, यथार्थ, सत्य, जीवन, पुरुषार्थ हर वो गुण समाविष्ट करने का प्रयास किया गया है, जहाँ से पढ़नेवाला पूरा हो गुजरे और अपने जीवन को जटीलता भरे धागो से छुड़ाकर सरल करे। विभिन्न विषयों पर टिप्पणी करते हुए रानी मोरे का यह कवितासंग्रह युवाओं से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी का मन मोह रह है। उक्त कवितासंग्रह सभी प्रमुख पुस्तक विक्रेताओं के पास उपलब्ध होने के साथ साथ सभी ऑनलाइन वेबसाइटों पर भी उपलब्ध है।



भारताच्या परंपरेला समर्पित ‘जडोंतक’ हिंदी कवितासंग्रह प्रकाशित

अध्यात्म आणि आधुनिकतेचे ज्वलंत उदाहरण म्हणून भारत संपूर्ण जगात आपला रुतबा अधिक बळकट करीत आहे. अध्यात्म आणि आधुनिकतेचा हाच अनोखा संगम आपल्या कवितांच्या शैलीत बांधून, मूळच्या वाशीम येथील, मुंबई मध्ये स्थायी असलेल्या राणी अमोल मोरे यांनी भारताच्या परंपरेला समर्पित केलेल्या ‘जडोंतक’ या हिंदी कवितासंग्रहाचे प्रजासत्ताक दिनाचे औचित्य साधून मुंबई येथे प्रकाशन करण्यात आले. विदर्भ पर्यटनावर आधारित 'वऱ्हाड वारं' आणि साहित्य भूषण पुरस्कार प्राप्त 'रानमोती’ या मराठी काव्यसंग्रहा नंतर राणी मोरे यांचा हा तसा हिंदीतील पहिलाच प्रयत्न. तरीही महत्वाची गोष्ट म्हणजे या कवितासंग्रहाला प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायिका पद्मश्री पद्मजा फेणाणी जोगळेकर यांनी प्रस्तावना दिलेली आहे आणि 'नोशन प्रेस' या प्रकाशनाने प्रकाशित केला आहे. या काव्यसंग्रहात एकूण नऊ विभाग आणि एक्यांशी कवितांचा समावेश आहे. ज्यामध्ये आराधना, जीवनकल्प, धरोहर, आख्यान, प्रेरणा, मलाल, नित्यरथ, कुदरत आणि बालरत्न विभाग आहेत. प्रत्येक विभागातील कविता त्या-त्या विभागणीनुसार विषयावर खोलवर भाष्य करतात.


आपल्या कवितासंग्रहाबद्दल बोलताना राणी मोरे म्हणतात, ‘जडोंतक’ हा सत्याकडे सत्याच्या दृष्टिकोनातून पाहण्याचा एक प्रयत्न आहे. ज्यामध्ये वाचकाला भगवान श्री कृष्णापासून आधुनिक भारताच्या सत्तासंघर्षा पर्यंतच्या प्रत्येक विषयाचा आस्वाद घेता येईल आणि त्याच्या 'मुळांपर्यंत' जाऊन विचार करायला भाग पडेल. वाचकांना जर खरोखरच कवितांमध्ये रस असेल, तर ‘जडोंतक’ त्यांच्यासाठी जंगलात मनसोक्त फिरण्यासारखे आहे, जिथे शिकार आहे तर शिकारी पण, जिथे पाणी आहे तर आग पण, जिथे फुलपाखरे आहेत तर विषारी साप पण, कधी सुंदर बहरलेली फुले मन मोहून टाकतील तर कधी काटे हि रुततील. इथे साधना, ईश्वर, वैराग्य, वास्तव, सत्य, जीवन, पुरुषार्थ या सर्व गुणांचा अंतर्भाव करण्याचा प्रयत्न दिसेल, ज्यातून वाचकाला जीवनाच्या क्लिष्ट धाग्यांपासून सुटका करून आपले जीवन साधे करण्यात मदत होईल. विविध विषयांवर भाष्य करणारा राणी मोरे यांचा हा कवितासंग्रह तरुणांपासून ज्येष्ठ नागरिकांपर्यंत सर्वांनाच भुरळ घालणारा आहे. सदर कविता संग्रह सर्व प्रमुख पुस्तक विक्रेत्यांकडे तसेच सर्व ऑनलाइन वेबसाइटवर उपलब्ध आहे.





Thursday, January 26, 2023

गुनगुनाऊ

गुनगुनाऊ जो मै तेरे मीठे वचन
प्रभु मन भाये तेरा साधा भजन
आँखे भर जाये मन भी हो मगन
शाम नाम की कृष्ण नाम की ये लगन
गुनगुनाऊ जो मै तेरे मीठे वचन

रात की संध्या दिन की भोर
माथे पे सजता निल पंख मोर
माखन खाये कान्हा होवे चोर
नटखट सूरत गोपियाँ विभोर
गुनगुनाऊ जो मै तेरे मीठे वचन

माँ यमुना का पानी तेरी कहानी
जप में नाम तेरा हो मेरी जुबानी
गोकुल का बचपन मथुरा का यौवन
ना ठुकराना हमें तुझको सौगन
गुनगुनाऊ जो मै तेरे मीठे वचन

तालियां बजाऊं मै बजाऊं ढोल
शुक्रिया प्रभु जीवन दिया अनमोल
कृष्ण नाम के सिवा कुछ ना याद प्रभु
बिन दर्शन के कैसे तेरे दास प्रभु
गुनगुनाऊ जो मै तेरे मीठे वचन

- रानमोती / Ranmoti

Thursday, January 5, 2023

वाट


हलक्याश्या वाऱ्याने उडून गेला पाचोळा
पावसाच्या सरींची वाट पाहतो तो मोर भोळा

- रानमोती / Ranmoti

नसीब



नसीब नसीब इतना विलाप क्यों
मांगनेवाला देनेवाले के खिलाप क्यों
जब तू निराशा से झुक जाता है
जहन में तेरे क्यों नसीब आता है
लिखनेवाले ने लिख दिया तुझे पीड़ा क्यों
हर हार और रोने का कारन नसीब क्यों

अभी लड़ना तुझमें बाकी है
इसीलिए तेरी मांगे उसने रोकी है
सोच में न पड़ चल निरंतर
धरती और आसमा का है अंतर
तू कलाकार के भाती अभिनय कर
भयभीत ना हो देनेवाला बैठा है ऊपर
नसीब नसीब इतना विलाप क्यों
मांगनेवाला देनेवाले के खिलाप क्यों

- रानमोती / Ranmoti

Wednesday, January 4, 2023

जनसंख्या


दादीअम्मा नानीअम्मा मान जावो ना
बंद कर दो पोता पोती रट लगाना
नई नई हुई है उनकी शादी
बच्चा मांग के ना करो बर्बादी

रास्तों की भीड़ जरा देखो अपने चश्मे से
कितनी उलझोगी पुराने रीती रस्मों से
भड़क गया है जनसंख्या का हाहाकार
फिर न कहना पोता पोती रह गये बेकार

विरासत का टुकड़ा बट गया चारो में
भाईचारा रह ना जाये बस विचारो में
जनसंख्या वृद्धि समाज की है बीमारी
विकास की कितनी गाथाये है अधूरी

दादीअम्मा नानीअम्मा को है गुजारिश
पोता पोती ना करो बच्चो से सिफारिश
एक ही काफी है वंश चलाने को
देश सराहेंगा आपके इस निर्णय को

- रानमोती / Ranmoti

Monday, January 2, 2023

विरासत



एक युग में देश था मेरा सोने की चिड़िया
दूसरे युग में कोहिनूर ले गई गोरी गुड़िया
कहा गया वो सोना और कहा गया वो नूर
एक था देश का धन तो दूसरा था दस्तूर
बस करो ऐ लुटेरों गुस्ताखी हमें नहीं मंजूर

राजाओं की मालाये सजती थी हिरे मोती से
गुरुओं की वाणी गूंजती सत्य वचनो से
कहा गए वो गुरु और कहा गए वो हीर
एक था देश का निर्माण दूसरा था जेवर
भाड़ोत्री शिक्षा प्रणाली अब क्यों है स्वीकार

विरो की गाथाये सुन खिलते थे फूल शान से
वचनबद्ध रहते थे लोग जीते थे अभिमान से
कहा गए वो वीर और कहा गए वो लोग
एक थे देश की रक्षा तो दूसरे थे नक्शा
क्यों लुटेरों को हमने नादानी में बक्शा

परोसती थी माँ भोजन जैसे अमृत की धारा``
अन्न ही परब्रम्ह यहाँ लगता था नारा
कहा गए वो नारे और कहा गया भोजन
एक अर्थ था संस्कार तो दूसरा था जीवन
क्यों चित्र विचित्र पिज़्ज़ा बर्गर का बना चलन

- रानमोती / Ranmoti

Recent Posts

क्या सागर, क्या किनारा।

सागर की लहरे, एक छोटे कंकड को बडी तेजी से उछल उछल कर किनारे तक ले जा रही थी। उस कंकड को बडी खुशी हुई, ये सोचकर कि मै इन लहरो के किसी काम का ...

Most Popular Posts