Search This Blog

Wednesday, August 31, 2022

आँगन

सज़ा दूँ मै तेरा आँगन कितना
धरती का आसमाँ से नाता जितना
फ़ुल खिलेंगे शनैः-शनैः बातें करेंगे
रंग फ़िज़ावो में उमदा मौज भरेंगे

तोता भी आयेगा कोयल भी गायेगी
चिड़ियों की मधुर पाठशाला भी होगी
पंछियों की अपनी ही दुनिया सजेगी
छोटे छोटे गमलों से उनकी प्यास बुझेगी

रंगबिरंगी पोशाखो में तितलियाँ आयेंगी
जीवन गीत रंगो का पंक्तियाँ सुनायेंगी
अष्ट दिशाओं में सुनहरी धूप परछाईं होगी
विभिन्न फल और पुष्पों की नुमाइश होगी

तिनका तिनका जिंदगी बढ़ती जाएगी
पैरो तले शान से खुशियाँ मंडराएगी
सज़ा दूँ मै तेरा आँगन कितना
धरती का आसमाँ से नाता जितना
- रानमोती / Ranmoti

Monday, August 29, 2022

तरह

दिन बरसते बारिशों की तरह
एक तरंग ख़ुशबू फूलों की तरह
धूप छाँव लहराती परदों की तरह
प्रकाश से सजी धरती नदियों की तरह

चेतना सरसराये पत्तों की तरह
मन महकाये ऋतुओं की तरह
चेहरा खिलखिलाये चाँद की तरह
जीवन झिलमिलाये सूरज की तरह

साल निकलते लमहों की तरह
याद रह जाये कहानी की तरह
पहल करायें नई साँसों की तरह
जीना सिखलाये अजनबी की तरह
दिन बरसते बारिशों की तरह
- रानमोती / Ranmoti

Saturday, August 27, 2022

विज्ञान के गुरुवर्य

हे विज्ञान के गुरुवर्य
तू आग के पंख लगाकर
विज्ञान का सेहरा सजाकर
उड़ गया जिस मंज़िल तक
उस मंजिल तक हमें भी पहुंचा दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी कलाम बना दे

हे विज्ञान के गुरुवर्य
जो रहे तुम्हारे अधूरे ख़्वाब
पूरा करेंगे उन्हें सब नन्हे नवाब
तू बस उनका पता बताकर
इस जंगल में आग लगा दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी रमन बना दे

हे विज्ञान के गुरुवर्य
ये देश बने आविष्कारों की भूमि
हर देशवासी रहेगा तुम्हारा ऋणी
उन आविष्कारों की भनक लगाकर
तू बस सोच की तिल्ली जला दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी सत्येन्द्र बना दे

हे विज्ञान के गुरुवर्य
देना हमें उन रास्तों का नक्शा
जिनकी बदौलत हो देश की रक्षा
भारत की आँखों में उम्मीद जगाकर
तू हर खोजी को आशीष दिला दे
हे विज्ञान के गुरुवर्य
हमें भी भाभा बना दे
- रानमोती / Ranmoti

Wednesday, August 24, 2022

छलांग

तुझसे क्या छिपा है
जो तू पीछे है अबतक
अकथित जो मंत्र है
रूठेंगे तुझसे कबतक

जीवन के रहस्यों को
सुन उनकी शब्दों में
अनकहे किस्सों को
ढूँढ उनकी किताबों में

तेरी अतृप्त भूख तू
जल से मिटा मत देना
पंच-पकवान की आस तू
यूँ ही छोड़ मत देना

उसकी सुगंध सूंघकर
रास्ता ढूँढले अनजान
तेरा भी हक़ है उसपर
पेटभर चख ले अरमान

रास्तों पर कठनाईयाँ
सुनकर रुक मत जाना
ज़िद रख उन्हें लाँधकर
तुझे मंजिल को है पाना

तू भी अंश है प्रकृति का
बात यह सुनिश्चित कर
सबको कवच है नियति का
तू देख उठाके नजर

दुसरो की जय से पहले
अपनी विजय निश्चित कर
वक्त पर मार छलांग
अन्यथा पछतायेगा जिंदगीभर
- रानमोती / Ranmoti

Friday, August 19, 2022

विरचित विजय

एक कालखंड महान षड़यंत्र
सेनापति कैसे बना राजन्य
इतिहास में लिखित कानमंत्र
विरचित विजय ना कुछ अन्य
ढाई सौ सालो का राज्य
एक सच्चे राज्य का नाज
प्रफुल्लित थे राजाधिराज
सोचा राज्य को देंगे शाबाशी
बाँटी जाये प्रजा में ख़ुशी
साथ ही हो विरो का सन्मान
सेनापति को भी मिले मान

मगर,
मौका फिरस्त था सेनापति
मन में कपट ज्वाला भाती
सोचा राजा को है मुझ पे नाज
क्यों ना छीन लू मै सरताज
शुरू की अपनी चतुराई
हर फितूर को दी लुगाई
एक साथ सब गद्दार जमाये
राजवंश ने सालो में गवाए
धोका तो खून में था
सेनापति का वंश ही फितूर था

फिर,
वह उत्सव की घडी आई
राज्य में हरतरफ थी रोशनाई
राजाने दी प्रजा को बधाई
हर वीर को मिली अपनी शाई
सेनापति का मन बेचैन था
ग़द्दारों में वह अव्वल था
भरे उत्सव में उसने ठानी
होगा राजा आनंद में धनि
तब लिखूंगा मै अपनी कहानी
राज्य में छाएगी अनहोनी


सेनापति,
मन में ले कपट ऐसा झपटा
विष का नाग जैसे लिपटा
भरी सभा को उसने बाँटा
मन में बोया युद्ध का काटा
सभा को झूटी कहानी बताकर
अघटित को घटित समझाकर
अपने साथियों से मिलकर
झूठे दुश्मनो की कहानी रचकर
चतुराई से की अपनी मनमानी
राजासे करवादी एक नादानी
राजा युद्ध को तैयार न था
उसको थोड़ा अंदेशा था
यह कोई सोची समझी चाल है
अपनाही पहना गद्दारी की खाल है

लेकिन,
अब ना कोई रास्ता था
प्रजा की सुरक्षा का वास्ता था
विवश होकर सेना को
दिया युद्ध का आदेश
प्राणो से प्रिय थी राजा को
अपनी प्रजा और स्वदेश
सेनापति मन ही मन ललचाया
अपनी साजिश का अंत युद्धमे पाया
उत्सव की सभा बनी युद्ध की ललकार
सेनापति ने बुलंद की अपनी तलवार
पर नाम उसपर दुश्मन का ना था
राजा का अंत बस जहन में था

अंतत:
अनचाहे युद्ध का आगाज हुआ
राजा संग सेना का तिलक हुआ
निकल पड़े मैदान में
झूठे दुश्मनों की खोज में
फसते गए शिकारी के जाल में
पड गई अमावस्या की काली छाया
असत्य ने डाली अपनी काया
आगे मनघडन दुश्मन था
साथ फितूर सेनापति का राज था
दुश्मनों का वार सहने से पहले
युद्ध का आगाज होने से पहले
गिधड बैठा आँख लगाकर
सही समय पर तीर चढ़ाकर
कर दिया अपनेही राजा पे वार
सेनापति था वह फितूर गद्दार
अपनेही राजा के पीठ में खंजीर चलाया
युद्ध में मारा गया प्रजा को जताया
स्वयम को सम्राट घोषित किया
अब वही मालिक सबको समझाया
राजवंश का पूर्ण नाश हो
बस उसकी ही जयजयकार हो
इसकदर सबको धमकाया
एक अकेलाही नायक भाया

पश्चात्
वीरता की झूठी गाथा लिखकर
मनघडन साहित्य से बहुश्रुत होकर
प्रजा में जबरन नायक कहलाया
इतिहास के पन्नोंपर वो छाया
उसके राज्य में असत्य पनपता
हरतरफ गद्दरों का गुणगान होता
प्रजा समक्ष नितांत बलवान दिखाता
गद्दार सेनापति अब राजा कहलाता
आगे चलकर फितूर साहित्यकारोंने
उसे राज्य का भगवान बना दिया
इसी तरह विरचित विजय अजय हो गया
एक सच्चे राज्य का विध्वंस हो गया
- रानमोती / RANMOTI

एक दिन की समस्या


दूर दराज़ जंगल के पार
बस्ती थी मेरी और परिवार
सुन्दर नदी पेड़ों की मुस्कान
बाढ़ का साया हरसाल तूफान
एक टुटाफूटा घर मानो छाले पड़े
जीवन पनपता उसमे जैसे वृक्ष खड़े
हर दिन नया सवेरा जीने की आस थी
एक डरावने दिन और रात की बस बात थी

माँ की सांसो को हर पल हृदय नाप रहा था
नौ महीनो से सृष्टि की चाहत में तरस रहा था
शायद वह आखरी दिन था माँ की कोख में रहने का
उसकी भी चाह थी मै बाहर आऊँ आनंद लू जीवन का
माँ तड़प रही थी दर्द से मदद मांगती किसी मर्द से
शायद वह मेरा बाप था जो व्याकुल था मेरी उम्मीद से
उस टूटीफूटी झोपडी में बारिश गंगा रूप बरस रही थी
बाढ़ और तूफान से बस वही एक सबका सहारा थी

बड़ी कठनाई संग माँ की कोख छोड़ पैदा हुआ
पहिली बार किसी अनछुये स्पर्श का एहसास हुआ
आँखे खोलू की ना खोलू समझ में ना आया
दुनिया में दिन पहला था या आखरी जान ना पाया
एक माई आकर बोलने लगी यह बचेगा नहीं
यहाँ का माहौल इसे इसकदर जचेगा नहीं
चलो ले चलो इसे अस्पताल नदी पार कही
जहा मिले इसे सुविधा डाक्टर और इलाज सही

आँखे खोलने ही वाला था पर मै घबरा गया
सोचा खोल के भी क्या करू जब वक्त निकल गया
एक दिन की दुनिया की मोहब्बत में पड़ जाऊँगा
जो पाया नहीं देखा नहीं उसे भी पल में खो जाऊँगा
इस कश्मकश में जीवन की एक घड़ी बीत गई
चाह थी रोशनाई की अंधियारे संग मिटती गई
अचानक दो चार बस्तीवाले जमा होकर पास आये
एक झोली में डाल मुझे अपने साथ ले गये

शायद उन्हें नदी पार कर मुझे ले जाना था
बाढ़ तो मानो धरती पर निरंतर झरना था
लड़खड़ाते पाँव ले गये आखिर किनारे तक
दूसरी घड़ी भी बीत गई इंतजार में तब तक
मौत मंडराती रही जिंदगी घुटने टेक रही थी
आरोग्यसेवा ठप्प थी दरबदर सन्नाटे की गंध थी
सब छाती पिट हताश हो बस्ती को कोस रहे थे
कहानी ये उन सबकी हरसाल बस सोच रहे थे

आशा निराशा में बदल गई जब तीसरी घड़ी आई
हर किसी की उम्मीदों पर मातम की परछाई
ठण्ड से रोम रोम मेरा कांप सिकुड़ रहा था
भूख के मारे पेट ज्वाला बन तड़प रहा था
रोने का मन किया सोचा इन्हे बोल दूँ
अपनी मासूम सी भूख अब खोल दूँ
फिर मन ही मन मुस्कुराया और
खुदसे ही बोला सुन ज़रा रुक
एक दिन की तो समस्या है
बस एक दिन की समस्या

-रानमोती / RANMOTI
{महाराष्ट्र के पालघर जिले की बालमृत्यु घटना से प्रेरित}

Wednesday, August 17, 2022

कण कण कान्हा


स्मित निर्दोष ब्रम्हाण्ड व्यापक
सिद्ध समृद्ध आनंदमय ऊर्जा
मन मन स्थित कण कण कान्हा
मोरपंख श्रुत अलंकार कृत शृंगार
तू जीवन तू आदर्श तू ही उपकार
कर्णकुंडल नभमंडल तू यज्ञ सर्वज्ञ
नेत्र चक्षु मन भिक्षु तू रक्षु कान्हा 
हे निराकार कर उद्धार बन कगार
जग तेरा निकुंज तू माली नंद मुकुंद
नयन पंकज पुष्प प्रेमरस भरे
दर्शन मात्र मोक्ष भय सारे तू ही हरे
मन मन स्थित कण कण कान्हा

- रानमोती / Ranmoti

Monday, August 15, 2022

धरती

बिन बादल तरसे रे
मोती मोती बरसे रे
धरती तो जुडी हुई
अंबर संग मिली हुई

उसकी तो नियति रे
अंधियारे को क्षति रे
बिन सूरज नहीं रे
उजियाले की ख्याति रे

प्रकृति से खिली हुई
जीवन को फुलाती गई
उसकी तो नाव है
जीवन हुआ सवार है

यात्री वो इंसान है
जीना जिसका काम है
कर्मो को बांधो गले रे
ख़ुशी ख़ुशी चलो रे
- रानमोती / Ranmoti

Tuesday, August 9, 2022

सजदा

सजदा तुझे हे अंबर के खुदा
तू मेरे रोम रोम में बसे सदा
कितने जतन करू तुझे पाने के
कैसे अवसर धुंडु तुझमें समाने के
इन काली घटाओ से तुझको ताकू
तू मुझमें छुपा कैसे परिचित हूँ
दे सबूत तेरे होने का
बतलादे क्या कारन मेरे रोने का
सजदा तुझे हे अंबर के खुदा

कभी काली घटा कभी चमकता तारा
कब तक फिरू तेरे दर्शन का मारा
बता तू कहाँ खामोश है
तेरी पहेली इस प्यासे को सजा है
हे दयावान हे विश्वरचित
प्राण देह में अब हो विरचित
उससे पहले तू हो विदित कर प्रमित
सजदा तुझे हे अंबर के खुदा
तू मेरे रोम रोम में बसे सदा
- रानमोती / Ranmoti

Sunday, August 7, 2022

संचित

(भारतीय सेना के वीर जवानों को समर्पित)

थोड़ा वक्त है ?
तो ठहर जाओ
ह्रदय में संचित है
कुछ सुनते जाओ
जीवन के मेरे किस्से
अगर सुनना चाहो
भारत माता की जय
गीत गाते रहो
मै रखवाला हूँ देश का
दुश्मन ललकारे कहकर
अरे ऐ तिरंगेवाले भेस का
उसकी जुबाँ गुर्राकर बोली
दम है तो आगे बढ़
है वतन से मोहब्बत
तो ये खड़ा हिमालय चढ़
उसकी बात सुन
ज्वालासा भड़का मेरा क्रोध
पल में ही बन गया
मै नेताजी सुभाषचंद्र बोस
टूट पड़ा दुश्मनोपर
जैसे बम के गोले
याद दिलादी उन्हें
गब्बर की शोले
सीना मेरा झुका नही
क्रोध मेरा रुका नही
डर के मारे दुश्मन
दबके बैठा बिल में
भगत सिंह की कहानिया
भरी पड़ी मेरे दिल में
मै गिर के जंगल का
शेर बन ऐसा गरजा
सह्याद्रि के नागों सा
काटने दौड़ा
उत्तराखंड के बादलोंसा
धो धो बरसा
दुश्मनों को बहाकर
ले गया मन्दाकिनी की तरह
लाशों के ढ़ेर बिछा दिए
समशान घाट की तरह
दुश्मन मेरा पाकिस्तान
चीन चित्र विचित्र
पर मै भारत माँ का
सच्चा हूँ सुपुत्र
ये समंदर ये आसमान
है मेरे मित्र
चन्द्रगुप्त शिवराज
रगो रगो में चरित्र
आँखों में खून खौलता गया
दिलमें जोश भरता गया
मातृभूमि का जयजयकार
ना इससे बड़ा कोई अवसर
सुनकर मेरे वतन का नारा
टूटटूट कर दुश्मन हारा
तिरंगा मेरे हाथ में
हर क्रांतिवीर मेरे साथ में
फ़तेह कर झंडा मैंने
उनकी जमीनपर ऐसे गाड़ा
नापकों को ढ़ेर कर
वसूला मेरे भूमि का भाड़ा
जीत कर युद्ध को
बढ़ा दी देश की सरहद
अब बस इस जमीन पर
मेरे वतन की हुकूमत
मेरे वतन की हुकूमत
- रानमोती / Ranmoti

साहित्य


मेरी क़लम ही
मेरी चूड़ियाँ खनकती
उच्च विचार श्रवणीय
बालियाँ झूलती
अमृत वर्षा करनेवाले
मधुर मेरे शब्द
लाली का रूप लेकर
लबोंको सजाते है
बदलाव क्रांतिवाला
मेरा पोशाक
तन पर चढ़ते ही
अपना रंग जमाता है
हाँ मै वही
दिव्य नारी का रूप हूँ
जिसे समझने को
हर कोई बेताब है
कोई इतना आमिर कहाँ
मेरे शृंगार को समझ ले
कोई इतना दिव्य कहाँ
मेरे गुणों को परख ले
ना ये बाज़ार के
चौराहे पर बिकते है
ना ये साधारण
नज़रिए से दिखते है
अनन्य दृष्टी से
अंकुरित साहित्य है
समझ के परे
अंजन अपेक्षित है

- रानमोती / Ranmoti

मेरे सपने

आस के आरजू पर बुने हुए फूल
बहते हुए झरने की धाराएं कुल
रेशमी खुशियों के दामन वो गुल
इन्द्रधनु के सप्तरंग कहलाते
मेरे सपने

मधुर संगीत की तरह राहत भर जाते
निराशा के गुब्बारे तोड़ हवासे लहराते
नई उमंग नई शुरवात अंकित कर जाते
मै जहाँ भी रहूँ उस जहाँ ले जाते
मेरे सपने

कुसुम की सुगंध से नित्य महकते
नन्हे पाँव जमीं पर ऐसे थिरकते
कहानी को अंजाम तक ले जाते
पल में भंग कर रंग जमाते
मेरे सपने

मंजिल तक पहुँचाती सिढीयोंसे खरे
इच्छापूर्ति की अनुभूति से परे
राजमहलों की कहानी से घिरे
बिन प्याले मदिरा की नशा चढ़ाते
मेरे सपने

ना स्वस्त ना परास्त है पुकार
ना स्वार्थ ना द्वेष है हितकार
ना आकार ना उकार है निराकार
ना अंत ना आरंभ हो अनंत साकार
मेरे सपने
- रानमोती / Ranmoti

Thursday, August 4, 2022

कल्प कल्प

तू कल्प कल्प स्थित संगम है
तेरे सिवा जीवन वर्जित है
तोड़ के बंधन आना यही है
तेरे नाम परे संसार नहीं है

बन के मूरत ऐसे सजू रे
पैरो में पायल ऐसे गुंजू रे
नैनों में काजल ऐसे मलू रे
याद में तेरी पल पल गिनू रे

दर्पण का ना काम हो कान्हा
आँखों में देखू रूप सुहाना
तुझ संग जीवन मैंने माना
पधारों अब वक्त ना बिगोना

तू कल्प कल्प स्थित संगम है
तेरे सिवा जीवन वर्जित है

- रानमोती / Ranmoti

Recent Posts

क्या सागर, क्या किनारा।

सागर की लहरे, एक छोटे कंकड को बडी तेजी से उछल उछल कर किनारे तक ले जा रही थी। उस कंकड को बडी खुशी हुई, ये सोचकर कि मै इन लहरो के किसी काम का ...

Most Popular Posts